न्यूट्रिनो क्या है ? What is Neutrino?
न्यूट्रिनो फरमियान (Fermion) समूह के अन्तर्गत आने वाला एक मूल कण है जिसके अस्तित्व को पहली बार सन 1930 में स्विस वैज्ञानिक वोल्फ गैंग पाउली द्वारा स्वीकार किया गया । इसके विद्युत उदासीन प्रवृत्ति के कारण इसे न्यूट्रिनो नाम दिया गया । फरमिआन समूह का होने की वजह से इनका चक्रण (spin) 1/2 होता है।
प्रारंभ में ऐसा माना जाता था कि इनमें कोई द्रव्यमान नहीं होता है परन्तु अब यह स्वीकार कर लिया गया है कि इनमें सूक्ष्म मात्रा में द्रव्यमान उपस्थित है । न्यूट्रिनो का द्रव्यमान लगभग 0.120eV होता है। न्यूट्रिनो फोटॉन के बाद ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक पाया जाने वाला दूसरा कण है ।
चक्रण के आधार पर 18 मूल कण हैं। इनमे से न्यूट्रिनो लेप्टॉन समूह के अंतर्गत आते हैं।
न्युट्रिनो 3 प्रकार के होते हैं -
1- इलेक्ट्रान न्यूट्रिनो
2- म्यूआन न्यूट्रिनो
3- टाऊ न्यूट्रिनो
न्यूट्रिनो अन्य किसी भी प्रकार के कण के साथ प्रतिक्रिया नहीं करते हैं यही कारण है कि प्रति सैकेण्ड हमारे शरीर में से होकर 100 ट्रिलियन से अधिक न्यूट्रिनो लहरों की तरह से गुजरते हैं परन्तु हमें उनका आभास नहीं होता है ।इनकी उपस्थिति का आभास न्यूट्रिनो वेधशाला में सेंसर के माध्यम से किया जाता है ।
न्यूट्रिनो की प्राप्ति-
वैज्ञानिक अवलोकनों के अनुसार इन कणों की प्राप्ति ब्रह्माण्ड में होने वाली घटनाओं जैसे - ब्लैक होल व विशाल तारों की मृत्यु से उत्पन्न गामा किरणों से होती है ।
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, उच्च ऊर्जा वाले न्यूट्रिनो संभवतः गैलेक्सी में विद्यमान डार्क मैटर के क्षय या पृथ्वी या सूर्य के कोर क्षेत्रों से प्राप्त होते हैं ।
रेडियोएक्टिव पदार्थों के क्षय से भी न्यूट्रिनो की प्राप्ति होती है।
विश्व में न्यूट्रिनो वेधशाला-
बर्फ घन ( Ice Cube ), अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव में उपस्थित वेधशाला है। यह विश्व की सबसे बड़ी वेधशाला है, जिसका निर्माण वर्ष 2010 में पूरा हुआ। इसमें ऑप्टिकल सेंटर लगे हैं, जिन्हें Digital Optical Module कहा जाता है।
भारत में न्यूट्रिनो वेधशाला -
1965 में भारत न्यूट्रिनो विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था परन्तु कोलार स्वर्ण क्षेत्र, जहाँ इसका परीक्षण होता था, उसके बंद होने के बाद से भारत में इस क्षेत्र में ठहराव आया। सत्र 2018 में केंद्र सरकार ने न्यूट्रिनो वेधशाला के निर्माण को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
न्यूट्रिनो सम्बंधित अनुसन्धान को आगे बढ़ाने के लिए INO ने 50000 टन का चुम्बक भी विकसित किया है ,यह चुम्बक CERN से चार गुना शक्तिशाली है। इसको तमिलनाडु के थेनी जिले में पृथ्वी के नीचे 63 एकड़ के क्षेत्र में विकसित किया है।
न्यूट्रिनो अपने आस पास के कणों से बहुत काम क्रिया करते हैं तथा अत्यधिक कमजोर होते हैं, जिससे उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है। इसी वजह से कम से कम 1 km जमीन का अवरोध उनके विकिरण व कणों को रोकने हेतु आवश्यक हैं।
यही कारण है कि पृथ्वी के नीचे (1300 m की गहराई में ) लगभग 2 किमी लम्बी व 7.5 मी चौड़ी एक सुरंग बनायी जाएगी जो एक कक्ष में खुलेगाी, जिसमें संसूचक होगा। यह देश में सबसे बड़ी तथा सर्वाधिक महँगी प्रयोगात्मक सुविधा होगी।
न्यूट्रिनो के अनुप्रयोग-
1. परमाणु प्रसार के निरीक्षण में सहायक- न्यूट्रिनो की परमाणु अप्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। IAEA के वैज्ञानिकों के अनुसार न्यूक्लिअर रिएक्टरों में रिसाव के कारण उत्सर्जित न्यूट्रिनो का पता लगाना संभव है। इस कारण से न्यूट्रिनो निरीक्षक के द्वारा दूर से ही प्लूटोनियम सामग्री का पता लगाया जा सकता है, जिसका प्रयोग नाभिकीय हथियार बनाने में किया जाता है। इसके कारण किसी भी आतंकी समूह द्वारा प्लूटोनियम की चोरी तथा इनसे बने हथियारों का पता लगाकर आतंकवाद को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे विश्व शांति व सुरक्षा बनी रहेगी।
2. खनिज और तेल के भंडारण का पता लगाने के लिए पृथ्वी का X -ray करने में सहायक- न्यूट्रिनो घूर्णन के बदलते रहते हैं जो कि इस पर निर्भर करता है कि वे कितने दूर गए तथा किन-किन पदार्थों से होकर गुजरे। अतः पृथ्वी के आर - पार जाने वाली न्यूट्रिनो की एक किरण का विश्लेषण करने पर पृथ्वी के नीचे स्थित खनिज व तेल के भंडारों का पता लगाया जा सकता है।
3. तीव्र वैश्विक संचार में सहायक- न्यूट्रिनो सभी वस्तुओं से होकर गुजरते हैं। अतः इनका प्रयोग करके डाटा का संचार तीव्रता से किया जा सकता है। इस प्रकार की संचार प्रणाली में अवरोध नहीं होंगे क्योंकि न्यूट्रिनो अपने मार्ग में आने वाले कणों के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। इस प्रकार पृथ्वी के भीतर भी संदेशों को तीव्रता से तथा स्पष्टता से भेजा जा सकता है।
4. डार्कमैटर का पता लगाने में- इनके प्रयोग से डार्क मैटर से विघटित पदार्थों का भी पता लगाया जा सकता है। वर्तमान में इसके लिए X - ray का प्रयोग किया जाता है परन्तु इसकी कुछ सीमाएँ हैं।
5. अंतरिक्ष के अनुसन्धान में- आकाशीय निकाय के आंतरिक संयोजन का अध्ययन करने के X - Ray के स्थान पर न्यूट्रिनो बीम का प्रयोग किया जाता है।
6. पृथ्वी के बाहर उपस्थित अन्य पिंडों पर संचार स्थापित काने के लिए- भविष्य में न्यूट्रिनो का प्रयोग इस किया जा सकता है जिससे की अन्य ग्रहों तथा उपग्रहों पर मौजूद लोगों से भी संवाद स्थापित किया जा सके।
*****𝘓𝘰𝘵𝘴 𝘰𝘧 𝘨𝘰𝘰𝘥 𝘸𝘪𝘴𝘩𝘦𝘴 𝘵𝘰 𝕊𝕔𝕚𝕖𝕟𝕥𝕚𝕗𝕚𝕔 𝔾𝕪𝕒𝕟𝕧𝕒𝕣𝕤𝕙𝕒 𝘰𝘯 𝘮𝘺 𝘴𝘪𝘥𝘦 𝘧𝘰𝘳 𝘱𝘳𝘰𝘷𝘪𝘥𝘪𝘯𝘨 𝘴𝘶𝘤𝘩 𝘪𝘯𝘧𝘰𝘳𝘮𝘢𝘵𝘪𝘰𝘯.
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