गणित के क्षेत्र मे भारत के कई पुरोधाओं ने अपने कृतित्व से भारतीय गौरव को शीर्षस्थ किया है जिनकी लम्बी सूची है जिन्होने अपने ज्ञान से पूरे विश्व को आलोकित किया है जिनका योगदान अप्रतिम, प्रेरणास्पद, अविस्मरणीय है।
आर्यभट्ट :- आर्यभट्ट (476 ई ० -550 ई ० ) प्राचीन भारत के महान ज्योतिषविद तथा गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभट्टीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। इसके गणितीय भाग में अंकगणित , बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति, सरल भिन्न, द्विघात समीकरण, घात शृंखला के योग तथा ज्याओं की एक तालिका है।
एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट्ट गुप्त काल के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट्ट ने सबसे सही और सुनिश्चित पाई (ℼ) के मान का निरूपण किया था। आर्यभट्ट ने गणित के सूत्रों को श्लोकों के रूप में लिखा था। शून्य की खोज का श्रेय भी आर्यभट्ट को जाता है इनका मानना था की कोई नंबर जैसे 0 का भी अस्तित्व है।
मानव कम्प्यूटर - शकुन्तला देवी :- शकुन्तला देवी का जन्म भारत के बंगलौर महानगर में हुआ था। वह बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा की धनी थीं। अपनी गणितीय समस्याओं का उत्तर देने की शक्ति से वह सबको आश्चर्यचकित कर देती थीं। शकुंतला देवी उस समय पहली बार सुर्ख़ियों में आयी, जब बीबीसी के एक कार्यक्रम के दौरान अंकगणित के एक जटिल सवाल का उत्तर फ़ौरन ही दे दिया।
शकुंतला देवी ने बहुत सारी संस्थाओं, थिएटर, टेलीविज़न पर गणितीय क्षमता का प्रदर्शन किया।
16 वर्ष की अवस्था में इनको बहुत ही प्रसिद्धि तब मिली जब इन्होंने दो 13 अंकों की संख्याओं का गुणा 28 सेकण्ड में निकाल कर उस समय के सबसे तेज़ कंप्यूटर को 10 सेकण्ड के अंतर से हराया।
अब उनकी प्रतिभा को सब परखना चाहते थे। वर्ष 1977 ई० में शकुन्तला देवी को अमेरिका जाने का मौका मिला। वहाँ की एक यूनिवर्सिटी में इनका मुकाबला उस समय की आधुनिक तकनीकिओं से पूर्ण कम्प्यूटर 'यूनीवेक' से हुआ। इस मुकाबले में शकुन्तला को 201 अंकों की एक संख्या का 23 वाँ मूल निकालना था। इन्हें सवाल हल करने में महज 50 सेकण्ड लगे जबकि कंप्यूटर ने 62 सेकण्ड का समय लिया था। इसके तुरंत बाद से ही शकुन्तला देवी का नाम 'भारतीय मानव कम्प्यूटर' के रूप में प्रख्यात हो गया।
शकुंतला देवी को 1988 ई० में वाशिंगटन D.C. रामानुजन मैथमेटिकल जीनियस अवार्ड दिया गया। 1981 ई० में इन्हें ' गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स ' में भी शामिल किया गया। इनके 84 वें जन्मदिन पर गूगल ने इनके सम्मान स्वरुप इन्हें 'गूगल डूडल' समर्पित किया।
शकुंतला देवी का लम्बी बीमारी के बाद हृदय गति रुक जाने और गुर्दे की समस्या के कारण 21 अप्रैल 2013 को बैंगलोर (कर्नाटक) में निधन हो गया। अपनी विलक्षण प्रतिभा से शकुंतला देवी ने भारत का परचम पूरे विश्व में फैलाया।
श्रीनिवास रामानुजन :- महान गणितज्ञ रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 ई० को कोयंबटूर के ईरोड नामक गाँव में हुआ था। यद्यपि इनके पास गणित की कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या पद्धति के क्षेत्रों में अहम योगदान दिया। इन्होंने खुद से ही गणित सीखा और जीवन भर में गणित के 3884 प्रमेय का संकलन किया था जिसमें से अधिकतर सही सिद्ध किये जा चुके हैं।
प्रारम्भिक शिक्षा में रामानुजन को गणित विषय में इतनी रूचि हो गयी कि वो अन्य किसी विषय में ध्यान नहीं देते थे। परिणामस्वरूप बारहवीं के परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए और उनकी शिक्षा बंद हो गयी।
मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी करते समय इन्होंने बहुत सारे गणित के सूत्र लिखे। उस समय भारत में अंग्रेजों का राज्य था अतः बिना किसी अंग्रेज गणितज्ञ की सहायता शोध कार्य को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। उस समय रामानुजन के कुछ शुभचिन्तकों ने उनके कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा। उन दिनों प्रोफेसर हार्डी बहुत बड़े गणितज्ञ थे। रामानुजन ने उनके एक अनुत्तरीय प्रश्न का उत्तर खोज निकाला। उसके बाद से प्रोफेसर हार्डी और रामानुजन के बीच पत्रव्यवहार शुरू हुआ। प्रो० हार्डी ने उस समय के बहुत से प्रतिभावान व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आँका था, विशिष्ट व्यक्तिओं तक को वह 60 अंक से ज्यादा नहीं देते थे परन्तु रामानुजन को उन्होंने पूरे 100 अंक दिए।
प्रोफेसर हार्डी रामानुजन से इतने अधिक प्रभावित हो गए कि उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज बुला लिया तथा इनके आने की पूरी व्यवस्था भी की थी। रामानुजन इंग्लैण्ड जाने से पहले 3000 सूत्र लिख चुके थे। उन्होंने प्रो० हार्डी के साथ मिलकर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किये। इसके बाद वहाँ रामानुजन को रॉयल सोसॉइटी का फेलो नामित किया गया जो कि एक भारतीय को मिलना बहुत बड़ी बात थी।
स्वास्थ्य स्तर गिरने की वजह रामानुजन फिर से भारत आ गए। बीमारी की दशा में भी इन्होंने मॉक थीटा फंक्शन पर शोधपत्र लिखा। इस शोधपत्र गणित में ही नहीं चिकित्साविज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है।
इनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा। 26 अप्रैल 1920 को प्रातः काल वह अचेत हो गए था दोपहर तक इन्होंने प्राण त्याग दिए। इस समय इनकी उम्र सिर्फ 33 वर्ष थी। इस गणितज्ञ ने भारत के गौरव को विश्व में और बढ़ाया।
भारत के इन महान गणितज्ञों ने पूरे विश्व को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया जो हमारे जीवन में वैज्ञानिक दृष्टि एवं दृष्टिकोण विकसित कर वैज्ञानिक अभिरुचि का संचार करता है और प्रेरणा प्रदान करता है।
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