विज्ञान क्या है ?what is Science? परिभाषा : विज्ञान सुसंगत एवं क्रमबद्ध ज्ञान है जिसके अंतर्गत ब्रह्माण्ड (Universe) में स्थित सजीव (Living) एवं निर्जीव (Non-Living) घटकों (Component) में होने वाली घटनाओं व परिघटनाओं का अध्ययन प्रयोगों (Practicals) एवं अवलोकनों (Observations) के द्वारा करते हैं। गणित में "प्रयोग" नहीं हैं, इस कारण गणित का अध्ययन कला के विषयों के साथ भी करते हैं। परन्तु गणित के बिना विज्ञान बिल्कुल अधूरा है, क्योंकि समस्त गणनाएँ (Counting) गणित की सहायता से की जाती है। साइंस शब्द की उत्पत्ति (Origin of word Science) : साइंस (Science) एक लैटिन शब्द Scientia से उत्पन्न है जिसका अर्थ है जानना (To know) । विज्ञान की शाखाएँ (Branches of Science): मुख्य रूप से विज्ञान को दो भागों में विभक्त किया गया है- भौतिक विज्ञान (Physical Science ) एवं जीवन विज्ञान (Life Science)। भौतिक विज्ञान में भौतिकी (Physics), रसायन विज्ञान (Chemistry), भूगर्भ विज्ञान (Geology), खगोल विज्ञान (Astronomy), अन्तरिक्ष विज्ञान (Space Science), कम्प्यूटर विज्ञान (Compu...
प्रतिरक्षा (इम्युनिटी:Immunity )
"प्रतिरक्षा का अभिप्राय यहाँ रोगों के प्रति मानव शरीर की सुरक्षा से है।" ज्ञातव्य है हमारा शरीर रोगकारकों से अंतिम क्षण तक लड़ने की क्षमता रखता है। यह क्षमता प्राकृतिक रूप से शरीर में अन्तर्निहित होती है। मानव शरीर में यह एक पूर्ण व्यवस्थित प्रतिरक्षी तंत्र होता है, जो आक्रमणकारी रोगाणुओं से शरीर का बचाव करता है जिसे प्रतिरक्षा (Immunity) कहते हैं।
यह विशेष प्रतिरक्षा तंत्र सभी मनुष्यों में पाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के प्रतिरक्षा का स्तर (Immunity level) कमजोर, मध्यम अथवा मजबूत हो सकता है। यह आनुवंशिक कारकों, व्यक्ति के रहन सहन, परिवेश, खान-पान, व्यक्तिगत स्वच्छता तथा वातावरणीय कारकों आदि पर भी निर्भर करता है।
प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है-
1-सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity)
2-उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity)
सहज प्रतिरक्षा एक अविशिष्ट प्रकार (Non-specific) की प्रतिरक्षा है जो जन्म के समय से ही होती है तथा बाहरी रोगाणुओं से शरीर को एक रोध (Barrier) के रूप में सुरक्षा प्रदान करती है।
यह प्रतिरक्षा चार प्रकार के रोध बनाकर शरीर को सुरक्षा प्रदान करती है।
क- शारीरिक रोध (Physical barrier)- रोगों से बचाव हेतु पहला रोध (Barrier) शरीर की त्वचा है जो बाहरी रोगाणुओं को शरीर के अन्दर प्रवेश करने से रोकती है ।
वायु के सम्पर्क वाले श्वासनली (Trachea) जठरान्त्र (Gastrointestinal) जननमूत्र पथ (Urinogenital Tract) को सुरक्षित रखने वाली श्लेष्मा (Mucous) बाहरी रोग कारकों को फंसाकर नष्ट कर देती है।
ख-कायिकीय रोध (Physiological Barrier) -आमाशय में बने विभिन्न प्रकार के अम्ल , लार ,आंसू एक प्रकार के रोध का कार्य करते हैं और शरीर को रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
ग-कोशिकीय रोध (Cellular barrier)- मानव के रक्त में श्वेत रुधिराणु (White blood corpuscles -WBC) पाये जाते हैं जैसे पी एम एन एल -न्यूट्रोफिल, मोनोसाईट तथा प्राकृतिक मारक लिम्फोसाईट और ऊतकों में वृहद भक्षकाणु (Macrophages) ये सभी मिलकर रोगों से हमारे शरीर को बचाते हैं ।
घ-साइटोकाइन रोध (Cytokine Barrier)- वाइरस से प्रभावित कोशिकाएँ एक विशेष प्रकार के प्रोटीन उत्पन्न करती हैं जिन्हे इंटरफेरॉन कहते हैं। यह इंटरफेरॉन असंक्रमित कोशिकाओं को संक्रमण से बचाता है ।
ये सब हमारे शरीर मे एक तंत्र का निर्माण करते हैं, जो रोगों से हमारी रक्षा करता है।
2-उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity)- यह प्रतिरक्षा विशेष रोगों से बचाव के लिये उपार्जित अथवा हासिल की जाती है जो स्मृति पर आधारित होता है।
जब पहली बार कोई रोगाणु हमारे शरीर पर आक्रमण करता है तो यह हमारे शरीर से अनुक्रिया (Response) करता है। जिसे प्राथमिक अनुक्रिया (Primary response) कहते हैं । इससे हमारे रक्त के प्लाज्मा मे एंटीबॉडीज बन जाती है। उसी रोगकारक (Pathogen) के शरीर में दोबारा प्रवेश करने पर उच्च तीव्रता की द्वितीयक या पूर्ववृत्तीय अनुक्रिया (Anamnestic response) होता है।
दो विशेष प्रकार के लसिकाणु(lymphocyte) इस प्रतिरक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1- बी लसिकाणु (B-lymphocytes)
2-टी लसिकाणु (T-lymphocytes)
किसी रोगजनक के आक्रमण की स्थिति में बी - लसिकाणु प्रोटीन प्रतिरक्षी (Antibiotics) की सेना उत्पन्न करते हैं ,जो उस रोगकारक को नष्ट करते हैं।
टी-लसिकाणु बी -लसिकाणुओं की सहायता करते हैं तथा रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं । एड्स के वायरस (HIV) इन्हीं टी लिम्फोसाईट को अपना शिकार बनाते हैं जिससे हमारे शरीर से रोगों से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है। हमारे शरीर में कई प्रकार के प्रतिरक्षी बनते हैं जैसे - IgA, IgM, IgE, IgG ।
रक्त एक तरल है ,जिसमें ये प्रतिरक्षी पाये जाते हैं।इस कारण इन्हें तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया (Humoral immune response) कहते हैं । यह एक प्रकार की उपार्जित प्रतिरक्षा है।
दूसरी उपार्जित प्रतिरक्षा कोशिका-माध्यित प्रतिरक्षा (cell - mediated immunity-CMI) कहते हैं ।
इन दोनों प्रतिरक्षी मानकों के मेल खाने के पश्चात ही अंगों का प्रत्यारोपण किया जाता है अन्यथा अंग देर सवेर शरीर के द्वारा नकार दिये जाते हैं इसी कारण प्रत्यारोपण के समय ऊतक मिलान और रक्त मिलान किया जाता है ।
मानव शरीर अपने तथा दूसरे शरीर के अंगों में अन्तर करने में सक्षम होता है। शरीर के अन्दर प्रवेश करने वाले रोगाणु अथवा कोई परपोषी प्रतिजन (antigen) कहलाता है । इस प्रतिजन के शरीर में प्रवेश करते ही शरीर द्वारा प्रतिरक्षी तैयार किया जाना सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity) कहलाता है।
जब बने बनाए प्रतिरक्षी शरीर मे प्रविष्ट किये जाते हैं तो इसे निष्क्रिय प्रतिरक्षा ( Passive immunity) कहते हैं।
टीकाकरण (Vaccination) एक प्रकार की निष्क्रिय प्रतिरक्षा है ।
माँ के दूध में उपस्थित IgA की प्रचुरता शिशुओं में प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
टीकाकरण (Vaccination) - विषाणुजनित बीमारियों जैसे हिपेटाइटिस-बी , पोलियो, गल्सुआँ, चेचक, कोविड 19 आदि रोगों का स्थाई इलाज टीकाकरण ही है।
टीकाकरण में रोगाणुओं का निष्क्रियित/दुर्बलीकृत प्रतिजन शरीर के अन्दर प्रवेश कराया जाता है परिणामस्वरुप शरीर में प्रतिरक्षी के साथ साथ बी एवं टी लिम्फोसाईट का निर्माण प्रेरित होता है । ये उसी के समान रोगाणुओं के प्रवेश करने पर उससे लड़कर नष्ट करने की क्षमता रखते हैं।
पुनर्योगज डी एन ए प्रौद्योगिकी की सहायता से खमीर (Yeast) से हिपेटाइटिस -बी का टीका तैयार किया जाता है ।
टिटनेस में एंटीटॉक्सिन व सर्पदंश मे दिये जाने वाले जीविष (venom) में प्रतिरक्षी होते हैं जो उसके प्रभाव को समाप्त करते हैं।
शरीर की प्रतिरक्षा के प्रति हमें सदैव पौष्टिक आहार का सेवन करते रहना चाहिए ।
सुधी पाठकों ! यदि उपरोक्त जानकारी उपयोगी हो तो इसे शेयर करें ताकि समाज में वैज्ञानिक दृष्टि एवं दृष्टिकोण विकसित किया जा सके।
सादर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box .